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Haryana Politics: चौधर यानी भावना की सियासत, रोहतक की चौधर के नाम पर जाट वोट का किया जाता है ध्रुवीकरण, सवाल… अबकी चौधर किसकी

 


आज जब लोकसभा चुनाव के लिए बिसात सजने लगी है, तब हरियाणा की 'चौधर' चर्चा में है। दरअसल, सियासत में 'चौधर' का पूरी तरह प्रयोग साल 2005 के विधानसभा चुनाव में जाट नेताओं और रणनीतिकार की ओर से किया गया। एक तरह से इसे प्रतिष्ठित शब्द मानकर इसका सार्वजनिक मंचों से उपयोग किया जाने लगा।

देखते ही देखते 'चौधर' शब्द सत्ता अभियान का एक बेहद चर्चित जुमला बन गया। सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 'रोहतक में 'चौधर' लानी है' का भाव मतदाताओं में भर दिया। जाट मतों को एक करने और रोहतक को 'चौधर' का केंद्र बनाने की रणनीति के तहत इस नारे को तेजी से हवा दी गई, पर खुद हुड्डा ने सार्वजनिक रूप से कभी इस जुमले का प्रयोग नहीं किया। दीगर बात यह है कि उनकी टोली के नेता उनकी मौजूदगी में ही पुराने रोहतक और आसपास में होने वाली जनसभाओं में इस जुमले का इस्तेमाल करते रहे।



चौधर' को रोहतक में केंद्रित करने का मकसद यह था कि चौधरी छोटूराम के बाद उनकी जिस चौधर पर बागड़ी नेताओं (देवीलाल, बंसीलाल व भजनलाल) और बागड़ (पुराना हिसार जिला) ने कब्जा कर लिया था, उसे हुड्डा फिर रोहतक में ला रहे थे। इस रणनीति का फायदा यह हुआ कि मुख्यमंत्री बनने से पहले ही हुड्डा रोहतक के एक तरह से सर्वमान्य चौधरी बन गए। हुड्डा ने खुद को तीनों 'लालों' (देवीलाल, बंसीलाल व भजनलाल) के विकल्प के रूप में सियासत में पेश किया।



उनके साथी लालों की राजनीति और सूबे की सियासत से परिवारवाद को खत्म करने की दहाड़ लगाते थे, जिसका मकसद रोहतक के जाट और कुछ हद तक दूसरी बिरादरी के मतों को चौधर के नाम पर गोलबंद करना ही था। हुड्डा के समर्थक नेताओं ने उन्हें देशवाली पट्टी में भूमिपुत्र के रूप में भी प्रोजेक्ट किया। इस पट्टी में हुड्डा के सिपहसालार 'तेरा लाल-तेरा बेटा' सरीखे नारों से जनता में जोश भरते रहे।

दरअसल, चौधरी छोटूराम के दौर में रोहतक के लोगों के दिमाग में चौधर की अवधारणा ने जन्म लिया, लेकिन लोकतंत्र में सत्ता का निर्धारण सामन्ती तरीकों से नहीं होता। हुड्डा के 'लाल' राजनीति के खात्मे के नारे के पीछे बागड़ की चौधर का अंत करना था। हालांकि बागड़ के जाट नेता इससे पहले चौधर की बात नहीं करते थे।

चौधर रोहतक में आ गई… ये जुमला खूब चला
हुड्डा के रणनीतिकारों की चौधर रोहतक में लाने की रणनीति सफल भी रही। तीन बार चौ. देवीलाल सरीखे कद्दावर व राष्ट्रीय नेता को चुनावी शिकस्त और चौधरी भजनलाल को कांग्रेस के भीतर ही टक्कर देकर हुड्डा ने प्रदेशव्यापी पहचान अर्जित कर ली। वहीं देशवाली पट्टी में वे एक दमदार जाट नेता के रूप में स्थापित हो गए।

विधानसभा चुनाव के बाद हुड्डा मुख्यमंत्री बने, तब 'चौधर रोहतक में आ गई' खूब चला और देशवाली बेल्ट के जाटों ने हुड्डा को रोहतक का चौधरी घोषित कर दिया। एक दशक तक हुड्डा इस चौधर को रोहतक में थामे रहे। तकनीकी रूप से तो चौधर हुड्डा के भूतपूर्व होने के बाद भी रोहतक में ही रही, क्योंकि निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी रोहतक के बनियानी गांव के रहने वाले हैं। लेकिन, गैर जाट नेताओं ने मनोहर लाल को न तो 'चौधरी' माना और न ही 'चौधर' का प्रतीक। चौधरी, चौधर और चौधराहट, ये ऐसे शब्द हैं जो इस पट्टी के जाट मतदाताओं को संतुष्ट करते हैं।




बांगर की चौधर भी खूब छाई
कांग्रेस में रहते हुए चौ. बीरेंद्र सिंह भी लगातार 'बांगर की चौधर' की बात करते रहे। उनके भाजपा में जाने के बाद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहना शुरू किया है कि यदि इलाके के लोगों का आशीर्वाद मिला तो वे चौधर उत्तर हरियाणा (बांगर) की दहलीज पर लाकर रख देंगे। राव इंद्रजीत सिंह भारतीय जनता पार्टी व केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहते हुए भी चौधर को अहीरवाल में लाने की बात करते रहे हैं।


सवाल… अबकी चौधर किसकी
चुनाव भले लोकसभा की 10 सीटों के लिए हो रहे हैं, पर सभी दल और नेता इसे विधानसभा का ट्रेलर मान रहे हैं। इसीलिए इन चुनावों में दीपेंद्र हुड्डा, मनोहरलाल, राव इंद्रजीत और चौटाला परिवार के कई सदस्यों ने मजबूती से ताल ठोक दी है। कई देशवाली नेता दीपेंद्र के लोकसभा चुनाव में उतरने को रोहतक की 'चौधर' वापसी की लड़ाई के रूप में देख रहे हैं तो भाजपा 'चौधर' अपने हाथ से किसी कीमत पर नहीं जाने देना चाहती। हालांकि राजनीति के जानकार वर्तमान हालात में 'चौधर' के जुमले को भावना की सियासत से ज्यादा नहीं मानते। उनका कहना है कि नए और युवा मतदाता रोजगार और तरक्की जैसे मसलों को प्राथमिकता देने लगे हैं।

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