Haryana:BJP की पॉलिटिक्स बीरेंद्र सिंह को रास नहीं आ रही बोले- पले पलाए शेर को बकरी बनाना चाह रहे; न्यू थोड़े काबू आऊं
हरियाणा की राजनीति को अच्छे से समझने और परखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह को भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अंदरूनी पॉलिटिक्स रास नहीं आ रही है। पिछले कुछ समय से गाहे बगाहे बीरेंद्र सिंह भाजपा पर निशाना साधने से नहीं चूक रहे। एक दिन पहले ही बीरेंद्र सिंह ने जींद के उचाना में खुद को राजनीति का शेर बताते हुए भाजपा पर निशाना साधा।
एक कहानी का जिक्र करते हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि पले पलाए शेर को बकरी बनाने की सोचते हैं, न्यू थोड़े काबू आऊं। इससे पहले चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ बैठे उनके बेटे हिसार से सांसद बृजेंद्र सिंह ने बकरी वाली कहानी सुनाई थी। बीरेंद्र सिंह ने कहा कि बृजेंद्र की सुनाई कहानी में और अपनी कहानी में थोड़ा फर्क है।
इस कहानी में तो छोटा बच्चा था शेर का। अपने वाली राजनीतिक कहानी है, उसमें तो पले पलाए शेर को बकरी बनाने की सोचते हैं। राजनीतिक मान्यताएं हैं कि हम किसी से दबकर राजनीति नहीं करते। खुलकर ईमानदारी, सच्चाई की राजनीति करते हैं।
जजपा से नाता नहीं तोड़ने पर BJP छोड़ने की बात कह चुके
करीब एक माह पहले जींद में चौधरी बीरेंद्र सिंह ने 'मेरी आवाज सुनो' नाम से रैली की थी। इस रैली के जरिए बीरेंद्र सिंह ने न केवल जजपा पर भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप लगाए, बल्कि भाजपा को भी चेतावनी दे दी थी कि अगर यदि पार्टी ने जननायक जनता पार्टी (JJP) से गठबंधन किया तो वह BJP को छोड़ देंगे।
दरअसल, चौधरी बीरेंद्र सिंह को भी लगने लग गया कि जजपा के सहयोगी रहते हुए उनकी राजनीति पर ही इसका गहरा असर होगा। क्योंकि जिस बांगर बेल्ट में बीरेंद्र सिंह की पकड़ है, वहां पर जजपा ने भी मजबूत पकड़ बनाई है। 2019 के चुनाव में जजपा ने यहां की विधानसभा की सीटें निकला कर दमखम भी दिखा दिया था।
दो तरफ से मिल रही चुनौती
वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए कुलदीप बिश्नोई भी बीरेंद्र सिंह को दूसरी चुनौती नजर आ रहे हैं। भले ही हिसार की आदमपुर सीट से कुलदीप के बेटे भव्य को भाजपा ने विधायक बना दिया, लेकिन आने वाले लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई भी हिसार लोकसभा सीट के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं। ऐसे में बीरेंद्र सिंह के सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह की टिकट पर भी संशय है।
भाजपा में रहकर मिल रही चुनौतियों को चौधरी बीरेंद्र सिंह भांप चुके हैं। इसी कारण वह रह रहकर निशाना साधने से नहीं चूकते। उन्हें भी मालूम हो चुका है कि आगामी चुनाव से पहले राजनीतिक गोटियां फिट करना बहुत जरूरी है। वरना जरा सी चूक कई सालों की राजनीति पर भारी पड़ सकती है।
2014 में कांग्रेस छोड़ शामिल हुए थे
दरअसल, कई दशक से हरियाणा में राजनीति करते आ रहे चौधरी बीरेंद्र सिंह ने 2014 में कांग्रेस छोड़कर BJP का दामन थामा था। भाजपा ने चौधरी बीरेंद्र सिंह को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ग्रामीण विकास मंत्रालय जैसा बड़ा पद देते हुए केंद्र में मंत्री बनाया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीरेंद्र सिंह ने खुद चुनाव लड़ने की बजाय IAS बेटे बृजेंद्र सिंह को राजनीति में उतारते हुए हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ाया।
बृजेंद्र सिंह ने इस चुनाव में दुष्यंत चौटाला को हराया था। हालांकि कुछ माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां बदल गईं। दुष्यंत चौटाला ने उचाना हल्के से चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी को हरा दिया। भाजपा को बहुमत नहीं मिलने के कारण जजपा के सहयोग से सरकार बनानी पड़ी।
किसान आंदोलन के पक्ष में बोलने वाले पहले भाजपा नेता
जजपा के भाजपा का सहयोगी बनते ही बीरेंद्र सिंह को अखर गया था। हालांकि कुछ साल गठबंधन को लेकर बीरेंद्र सिंह ने कुछ नहीं बोला, लेकिन अब चुनावी साल नजदीक आने के बाद जजपा पर सीधे तौर पर हमलावर हुए हैं। भले ही भाजपा पर सीधे तौर पर निशाना नहीं साधा, लेकिन कई बार सख्त लहजे में चेतावनी देने से भी नहीं चूके। ये किसान आंदोलन के समय भी देखने को मिला था। चौधरी बीरेंद्र सिंह किसान आंदोलन के पक्ष में बोलने वाले पहले भाजपा नेता थे।
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