हरियाणा के रेवाड़ी नगर परिषद का काम पिछले 9 माह से ठप हो चुका है। काम से ज्यादा विवादों को लेकर नप चर्चा में रही है। नए टेंडर लगाए ही नहीं जा रही। हाउस की बैठकों में भी खूब मंथन हो चुका है, मगर किसी तरह समाधान नहीं निकल रहा।
जो बजट है उसे तो खर्च किया जाए। लेकिन अधिकारियों की ओर से टेंडर ही नहीं लगाए जा रहे हैं। जो प्रस्ताव आगे बढ़ता है, उसे किसी न किसी स्तर पर आपत्ति लगाकर रोक दिया जाता है। इसी के चलते न तो सड़कें सुधर पा रही हैं और न स्ट्रीट लाइटें।
पार्कों की भी स्थिति खराब हो रही है। नालों पर जालियां और सीवर के मेनहॉल पर ढक्कन नहीं लग पा रहे। डोर-टू-डोर कलेक्शन के नाम पर सिर्फ कामचलाऊ व्यवस्था की हुई है। तमाम अव्यवस्थाओं से शहर का विकास पूरी तरह थमा हुआ है। दावा किया जा रहा है कि सुधार के प्रयास चल रहे हैं, मगर धरातल पर काम कब नजर आएगा, इसका जवाब जिम्मेदारों के पास भी नहीं है।
ईओ-सचिव नहीं, चार्ज देने से खानापूर्ति हो रही
नप में कुछ माह से नियमित कार्यकारी अधिकारी (ईओ) और सचिव की नियुक्त नहीं है। इनकी जगह सिर्फ अतिरिक्त कार्यभार सौंपकर काम चलाया जा रहा है। झज्जर के कार्यकारी अधिकारी और धारूहेड़ा के सचिव को अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है। सप्ताह में 1-2 ड्यूटी होने से काम की सिर्फ खानापूर्ति ही हो पाती है। इन अधिकारियों के बना न तो मॉनिटरिंग हो पाती है और ना ही दूसरे काम। बिलों के लिए भी ईओ के रेवाड़ी आने का इंतजार करना पड़ता है।
नगर परिषद हाउस के मौजूदा कार्यकाल के लिए दिसंबर 2020 में चुनाव हुए थे। जनवरी 2021 में चेयरमैन व पार्षदों ने शपथ ग्रहण की। शुरूआत के एक साल में रेवाड़ी शहर में जमकर टेंडर हुए। शहर की मुख्य सड़कों के टेंडर किए गए तथा खुद केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह इनका शिलान्यास करने पहुंचे थे। इसके बाद एनडीसी व प्रॉपर्टी आईडी का विवाद शुरू हो गया।
29 मार्च 2022 को नगर परिषद के तत्कालीन ईओ व एमई सहित जनस्वास्थ्य विभाग के एसडीओ पर एफआईआर दर्ज हो गई। इस घटना के बाद से ही नगर परिषद में काम की व्यवस्था बिगड़नी शुरू हो गई। रही सही कसर महीनेभर बाद ही नए ईओ को विजिलेंस ने वर्ष 2013-14 के पुराने मामले में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद शिकायत और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि अब तक नगर परिषद उबर नहीं पा रही।
सड़कें : सेक्टरों समेत बाकी शहर में सड़कों के काम नहीं हाे पा रहे। इनमें मैनपावर की जरूरत नहीं, बल्कि तकनीकी अधिकारी इसके लिए टेंडर प्रक्रिया कर सकते हैं। लेकिन यह मामला अटका है।
लाइटें : स्ट्रीट लाइटें लंबे समय से बंद हैं। अधिकारी तालमेल और अंतिम निर्णय नहीं ले पा रहे, इसके चलते अभी तक टेंडर नहीं हो पाए। इन लाइटों के लिए पहले जोन में बांटकर टेंडर करने थे, अब पूरे शहर का एक टेंडर करने की बात कही जा रही है।
पार्क : पार्कों की स्थिति खराब ही है। नगर परिषद द्वारा टेंडर किए वो कई गुना ज्यादा में छोड़े जाने से विवाद गहरा गया। अब इसकी जांच एडीसी कर रहे हैं। जालियां : शहर में नालों की जालियां टूटी हुई हैं। पार्षद लगाकर आवाज उठाते रहे हैं, मगर समाधान नहीं निकल रहा। अब इसके टेंडर की कार्यवाही चल रही है, मगर हुए नहीं हैं।
रेवाड़ी नगर परिषद चेयरपर्सन ने चुनाव में जो जो दावे किए थे वो सभी खोखले साबित हुए, घपले घोटाले जिसके लिए पूरी तरह चेयरपर्सन जिम्मेदार,जिसको सांसद का आशीर्वाद प्राप्त
लिए लोगों को तरसना पड़े तो इसे आप क्या कहेंगे।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं रेवाड़ी शहर की
जहां आज भी लोग न केवल दुर्दशा का शिकार है, बल्कि नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।
*बाजारों में फैले अतिक्रमण की हो
*वाहनों की पार्किंग की हो
*चौराहों पर लगी रेड लाइटों की हो
*अवैध कब्जों की हो,
*प्रॉपर्टी टैक्स की हो
*सफाई व्यवस्था की हो
शहर के हालात किसी से छिपे नहीं हैं, जिन्हें लेकर अक्सर लोगों को नगर परिषद को कोसते देखा जा सकता है।
शहर की लाइफ लाइन कहलाने वाले सर्कुलर रोड पर बने फुटपाथ पर अवैध कब्जे इस कदर हो चले हैं कि लोगों ने फुटपाथ को अपनी धरोहर ही समझ लिया है तो वही पार्किंग के नाम पर शहर में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां लोग अपने वाहन खड़ा कर सकें। ऐसे में पूरा सर्कुलर रोड ही अवैध पार्किंग स्थल में तब्दील हो गया है और सर्कुलर रोड पर जगह जगह खड़े वाहन शहर की सुंदरता में ग्रहण का काम कर रहे हैं।
-वहीं शहर के प्रमुख बाजारों में फैले अतिक्रमण के कारण दुपहिया वाहन तो दूर पैदल लोगों का भी इन बाजारों से गुजरना दुश्वार हो गया है।
-जनता की गाढ़ी कमाई के लाखों रुपए खर्च कर चौराहों पर लगी रेड लाइटें सफेद हाथी बनी खड़ी दिखाई दे रही है।
-वहीं सर्कुलर रोड पर सड़क के बीचो-बीच फैला बिल्डिंग मेटेरियल भी वाहनों के आवागमन में किसी बड़ी बाधा से कम नहीं है। ऐसे में वाहनों के सुचारू संचालन में ट्रैफिक पुलिस भी अपने आपको असहाय महसूस करती है।
-लोगों की सुविधा के लिए सड़कों पर लगी स्ट्रीट लाइटें यहां तक कि लाखों खर्च कर लगाई गई
-महाराजा लाइटें भी अधिकांश जगहों पर शो पीस ही साबित हो रही है।
-वहीं शहर की गलियों से लेकर सड़कों तक गंदगी के अंबार भी कम नहीं है।
उपायुक्त महोदय के निर्देश के बावजूद अभी तक शहर में नालों की सफाई भी ठीक से नहीं हो पाई है।
-वहीं प्रमुख बाजारों में सड़क के बीचो बीच खड़ी रेहड़ियों के लिए नगर परिषद कोई जगह तक चिन्हित नहीं कर पाई है।
-शहर की सड़कों से लेकर चौराहों तक अनेक स्थानों पर बिना किसी टैंडर के लगे होल्डिंग भी शहर की दुर्दशा को बढ़ाने में पीछे नहीं हैं। इस पर भी नगर परिषद का कोई नियंत्रण नहीं है।
शहर में जब भाजपा की सरकार बनी थी तो लोगों को नवनियुक्त चेयरपर्सन से काफी उम्मीदें थी, लेकिन जैसे-जैसे वक्त निकलता गया, लोगों की उम्मीदों पर भी पानी फिरता चला गया शहर की सरकार बने आज करीब डेढ़ साल से ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन शहर के हालातों में कोई खास सुधार नहीं हो सका और यह हाल तो तब है जब शहर से लेकर प्रदेश और देश में एक ही पार्टी की सरकार है।
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