अतिक्रमणकारियों की दबंगई ने कमजोर व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी, सरकारी सड़क पर यूं अतिक्रमण हो रहा है जैसे इसका लाइसेंस खुद अधिकारियों ने अतिक्रमणकारियों को दे रखा हो
अतिक्रमणकारियों ने अतिक्रमण करने के नए-नए तरीके निकाल रखे हैं यह नजारा है मुरली मनोहर मंदिर के बाहर का अतिक्रमणकारियों ने मंदिर के बाहर मेन गेट की जगह को भी नहीं बख्शा
हरियाणा रेवाड़ी/
अतिक्रमणकारियों की दबंगई ने कमजोर व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। सरकारी सड़क पर यूं अतिक्रमण हो रहा है जैसे इसका लाइसेंस खुद अधिकारियों ने अतिक्रमणकारियों को दे रखा हो।
हाथ जोड़ने से कुछ नहीं हुआ, अब कुछ एक्शन ले लीजिए
अगर आपको याद हो तो नगर पालिका चेयरपर्सन बनने के बाद पूनम यादव ने सबसे पहले यही कहा था कि वह शहर को अतिक्रमणमुक्त कराएंगी। चेयरपर्सन हाथ जोड़कर बाजारों में भी निकली थीं तथा व्यापारियों से आग्रह किया था कि वह अतिक्रमण को या तो खुद ही हटा लें या फिर नप को एक्शन लेना पड़ेगा। चेयरपर्सन के हाथ जोड़ने का परिणाम आजतक नहीं आया है। जब परिणाम कुछ आया ही नहीं तो जो एक्शन लेने की बात कही गई थी वह करके ही क्यों न देख लिया जाए। यह समझ से परे बात है कि आखिरकार डेढ़ साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी नप चेयरपर्सन को अपने किए हुए वादों की याद क्यों नहीं आ रही है। शहर अतिक्रमणकारियों के चुंगल में इस तरह से फंस चुका है कि सड़कों पर निकलने तक की जगह नहीं है। सरकारी जमीन का मोटा किराया वसूला जा रहा है और अधिकारी चुप हैं। नप के अधिकारियों की यह चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है।
बाजारों में निकलने तक की नहीं जगह
अतिक्रमणकारियों पर नकेल कसने के लिए शहर के बाजारों में गोकल गेट से लेकर बजाजा बाजार को जाने वाली गली के कोने तक डिवाइडर लगाए गए थे। उम्मीद थी कि डिवाइडर लगाए जाने के बाद अपनी दुकानों के सामने सड़क पर फड़ लगवाने वाले व्यापारी हरकतों से बाज आ जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। व्यापारी पहले की ही भांति सड़क पर फड़ लगवाकर किराया वसूल रहे हैं। 25 से 30 हजार रुपये महीना एक फड़ का किराया है। समझ नहीं आता जो लोग शहर की व्यवस्था को बिगाड़ रहे हैं उनसे नप अधिकारियों को डर क्यों लग रहा है। क्यों नहीं उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती। वीडियोग्राफी कराकर इनके कारनामों को कैद किया जाए तथा इसके बाद कार्रवाई की जाए ताकि यह बाद में शोर भी न मचा सकें। बताया जा रहा है कि इन अतिक्रणकारियों की जड़ें कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों तक पहुंची हुई हैं, इसलिए इनपर कार्रवाई नहीं होती
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