*अहीरवाल में 'राव मुक्त भाजपा' बनाने की पूरी तैयारी!
*सीएम मनोहर लाल के रेवाड़ी और नारनौल के कार्यकर्ता सम्मेलन में दिखाई दी उपेक्षा की बड़ी झलक
*दोनों जगह सम्मेलन के बैनरो में गायब नजर आए राव
*भाजपा के ही राव विरोधी खेमे को दिया जा रहा पूरा भाव
*बैनरों से राव को गायब रखने के पीछे भाजपा की बड़ी चाल!
( हरियाणा)
अहीरवाल क्षेत्र में विस्तृत जनाधार के दम पर भाजपा हाईकमान को अपनी शर्तें मनवाने के लिए मजबूर करने वाले राव इंद्रजीत सिंह को अब पार्टी हाईकमान ने भाव देना लगभग बंद कर दिया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विभिन्न मौकों पर नजरअंदाज करते हुए भाजपा संगठन अब अहीरवाल में बिना राव के अपनी पकड़ मजबूत बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। बुधवार को नारनौल और रेवाड़ी में आयोजित सीएम मनोहर लाल के कार्यकर्ता सम्मेलन में से राव और उनके फोटो दोनों का गायब होना इस बात के संकेत दे रहा है कि अब भाजपा हाईकमान राव के बिना भी अहीरवाल में अपना मजबूत वर्चस्व कायम करने की रणनीति पर काम कर रही है। काफी समय से राव को उपेक्षा पर उपेक्षा का शिकार बनाकर भाजपा में उनके विरोधी खेमे को जमकर तवज्जो दी जा रही है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए राव इंद्रजीत सिंह ने अहीरवाल के पुराने भाजपा नेताओं को पार्टी में एक तरह से हाशिए पर लाने का काम कर दिया था। लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनाव के दौरान टिकट वितरण के समय पार्टी हाईकमान को राव की तमाम शर्तें मानने पर मजबूर होना पड़ा था। गत विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण के समय पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव व भाजपा के पुराने कार्यकर्ता रणधीर सिंह कापडीवास जैसे नेताओं को टिकट से वंचित होना पड़ा था। राव की ही जिद का परिणाम था कि अहीरवाल में जबरदस्त लहर होने के बावजूद पार्टी ने रेवाड़ी और बादशाहपुर सीटों को गंवा दिया था। यह बात और है कि पटौदी और नांगल चौधरी सीटों पर राव की जिद नहीं चल पाई थी और इन दोनों ही सीटों पर राव के दो राजनीतिक विरोधियों ने जीत हासिल की थी। नांगल चौधरी में तो राव समर्थकों ने भाजपा प्रत्याशी डॉ. अभय सिंह यादव का खुलकर विरोध भी किया था, लेकिन क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ के दम पर वह लगातार दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो गए थे। विधानसभा चुनाव के बाद भी अहीरवाल के मामले में राव का राजनीतिक हस्तक्षेप लगातार जारी रहा।
अपने मजबूत जनाधार के कारण अहीरवाल क्षेत्र में राव इंद्रजीत सिंह अपनी मर्जी के खिलाफ पार्टी का कोई भी निर्णय स्वीकार करने को तैयार नहीं होते। विधानसभा चुनावों के बाद मंत्रिमंडल गठन के समय डॉ. अभय सिंह को मंत्री बनाने की पूरी तैयारी की जा चुकी थी, लेकिन राव इंद्रजीत सिंह को अपने इस राजनीतिक विरोधी की मंत्री पद पर ताजपोशी मंजूर नहीं थी। राव के दबाव के चलते भाजपा हाईकमान ने ऐन मौके पर डॉ. अभय सिंह यादव को मंत्री पद से वंचित रख दिया, जबकि उनके स्थान पर राव के खास ओमप्रकाश यादव को मंत्री बना दिया। नारनौल की तत्कालीन एसपी सुलोचना गजराज के साथ हुए मंत्री ओमप्रकाश यादव के ऑडियो वायरल प्रकरण के बाद मंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ गई थी, परंतु राव इंद्रजीत सिंह ओमप्रकाश यादव का बचाव करने में कामयाब रहे थे। सूत्रों के अनुसार कुछ समय पहले प्रदेश मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर ओमप्रकाश यादव को हटाकर डॉ. अभय सिंह यादव को मंत्री बनाने की तैयारी चल रही थी लेकिन राव इंद्रजीत सिंह ने एक बार फिर डॉ. अभय सिंह यादव का रास्ता रोकने पर पूरा जोर लगा दिया था।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से राव इंद्रजीत सिंह को अब एक के बाद एक झटके देने का दौर शुरू कर दिया गया है। राव को सबसे बड़ा झटका उस समय दिया गया, जब गत विधानसभा चुनावों में रेवाड़ी हलके में भाजपा प्रत्याशी का विरोध करने वाले डॉ. अरविंद यादव को हरको बैंक का चेयरमैन बनाया गया। राव इंद्रजीत सिंह और उनके समर्थकों को सीएम मनोहर लाल का यह निर्णय अभी तक रास नहीं आया है। पार्टी संगठन विस्तार के दौरान भी राव इंद्रजीत सिंह समर्थकों को लगभग खाली हाथ रखा गया। इसके विपरीत राव विरोधी खेमे के नेताओं को संगठन में पूरा महत्व दिया गया। राव विरोधी खेमे से जुड़े जीएल शर्मा, संतोष यादव व दूसरे नेताओं को संगठन में स्थान दिया गया, जबकि राव समर्थकों को प्रदेश संगठन से लगभग दूर रखा गया। अरविंद यादव को पंचायत चुनाव प्रबंधन समिति में शामिल करके एक बार फिर से राव को चिढ़ाने का काम किया गया है। इन मामलों को लेकर अभी तक राव ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। सीएम मनोहर लाल के रेवाड़ी और नारनौल में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलनों में लगे बैनरों से राव इंद्रजीत सिंह के फोटो भी गायब थे। भले ही राव समर्थक इसे अनजाने में हुई भूल करार दे रहे हो, लेकिन गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र के रेवाड़ी हलके में आयोजित सम्मेलन से राव और बैनर से उनका फोटो गायब होना भूल नहीं माना जा सकता। राजनीतिक जानकारों के अनुसार अब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अहीरवाल के मामलों में राव के इशारे पर चलने की बजाय राव को अपने इशारे पर चलाने की नीति पर काम कर रहा है। देखना यह है कि बदली हुई परिस्थितियों में राव की आगामी रणनीति क्या होगी?
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