रेवाड़ी नगर परिषद चुनाव
में चेयरपर्सन बनी भाजपा
उम्मीदवार पूनम यादव की
जीत की कई वजह है। जिसमें
अधिकांश सार्वजनिक है तो कुछ
ऐसी है जो खामोशी के साथ उसे
ताकत देती चली गईं। दरअसल
जब नप चुनाव की घोषणा हुई
थी उस समय सेक्टर तीन में
रहने वाली पूनम यादव के पति
पूर्व नगर पार्षद बलजीत यादव
ने कभी नहीं सोचा था कि वह
चेयरपर्सन के लिए पूनम को
चुनावी मैदान में उतारेंगे। उधर
भाजपा में इस पद के लिए दावेदारी
शुरू हो गईं। अनेक पदाधिकारी
अपना- अपना बायाडोटा लेकर
करीबी नेताओं के पास जमा
कराने लगे। बलजीत लगातार
अपने वार्ड 21 से पार्षद बनते
आ रहे थे। खुद पूनम भी पार्षद
रह चुकी थी। लिहाजा मौजूदा
हालात को देखते हुए बलजीत
ने भी रूटीन की तरह पूनम का
बायोडाटा जमा करा दिया। पैनल
से होता हुआ यह बायोडाटा जब
चयन कमेटी के पास पहुंचा तो
सीनियर नेता के तोर पर केंद्रीय
मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की सलाह
ली गईं। राव ने पूनम के लिए
स्वीकृति दे दी। हालांकि उस
समय भाजपा के कुछ सीनियर
पदाधिकारी भी दावेदारी में थे।
कमेटी ने पूनम यादव के नाम
की स्वीकृति दे दी इसके बाद
इस दंपति के लिए भाजपा के
सभी पदाधिकारियों एवं नेताओं
को एकजुट करना सबसे बड़ी
चुनौती थी। शुरूआत में लगा कि
भाजपा की अंदरूनी लड़ाई या
मजबूती ही पूनम की जीत- हार
की वजह बनेगी। पूनम ने जब
नामाकंन भरा उस समय भाजपा
एकजुट नजर आई। इसकी
वजह बलजीत और पूनम का
सादगीपन। सुबह शाम यह दंपति
भाजपा पदाधिकारियों से मिलते
रहे। इसी वजह से धीरे- धीरे
भाजपा किसी ना किसी बहाने
जुड़ती चली गई जो अंतिम समय
तक जीत की प्रमुख वजह रही।
पूरे चुनाव में नाराज चल रहे
पदाधिकारियों ने भीतरघात करने
की बजाय खामोश रहना ही
उचित समझा। इसलिए भाजपा
मतदान तक बिखरने से बच गईं।
यहीं वजह ही भाजपा की जीत
का आधार बनी। उधर कांग्रेस
एवं आजाद प्रत्याशी को भरोसा
था कि वार्ड स्तर पर सिंबल
देकर भाजपा बहुत बड़ी गलती
कर चुकी है। दूसरा भाजपा का
एक धड़ा अंदरखाने पूनम यादव
को कमजोर करेगा। ऐसा नहीं
हुआ। अंत में जिस बिखराव की
उम्मीद थी वह वहीं ठहर गईं।
इस पूरे चुनाव में बलजीत यादव
एवं उनकी पत्नी पूनम यादव
सामाजिक और राजनीतिक तौर
पर सादगी को अपनी ताकत
बनाकर भाजपा को चुनाव में
एकजुट करने में कामयाब रहे।
यही उनकी जीत का मूल मंत्र
बन गया।
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