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Haryana BJP:विधानसभा चुनाव 2014 से सत्ता में रहा आसान नहीं,एंटी इनकंबेंसी समेत 3 बड़ी चुनौतियां,संगठन के बावजूद 49% बूथ हारी,इन मंत्रियों और विधायकों के गढ़ में पिछड़ी पार्टी

 


हरियाणा में अबकी बार भाजपा 75 पार नहीं बल्कि तीसरी बार भाजपा सरकार के नारे को लेकर आगे बढ़ेगा। भाजपा कुरूक्षेत्र की थानेसर विधानसभा रण से चुनावी शंखनाद फूंकेगी। यहां भाजपा बड़ी रैली करेगी। इस रैली में प्रदेश भाजपा प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मौजूद रहेंगे।

हरियाणा में 2014 से सत्ता में भाजपा
हरियाणा में 2014 से ही भाजपा सत्ता में है। केंद्र में 2014 में मोदी सरकार के समानांतर ही हरियाणा में खट्‌टर सरकार बनी थी। 2019 में भी हरियाणा में मनोहर लाल खट्‌टर के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और भाजपा जजपा के सहयोग से सत्ता तक पहुंची। मगर अबकी बार खट्‌टर सांसद का चुनाव जीतकर केंद्र में मंत्री बन गए हैं। अब नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में यह चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं है। खट्‌टर के जाने के बाद भाजपा के पास प्रदेश में कोई बड़ा चेहरा नहीं है।

भाजपा की राह आसान नहीं
2019 में जहां भाजपा ने लोकसभा में हरियाणा की 10 में से 10 सीटें जीती थीं वहीं इस बार लोकसभा के चुनाव में भाजपा 5 सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस लोकसभा चुनावों में मजबूत बनकर उभरी है। 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने गठबंधन में रहते हुए 46 सीटों पर बढ़त बनाई। वहीं भाजपा 42 विधानसभा सीटों पर आगे रही। ऐसे में भाजपा के सामने इस बार मुकाबला टफ है।

भाजपा के सामने ये 3 बड़ी चुनौतियां

1. सत्ता विरोधी लहर : भाजपा हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला, मगर इसका फायदा नहीं मिला। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जरूर मोदी के नाम के वोट मिले, मगर अबकी बार विधानसभा चुनाव की राह कठिन है।

2. जाट और एससी समाज की नाराजगी : भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट और एससी समाज है। लोकसभा चुनाव में दोनों समाज ने भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट किया। इसका परिणाम था कि जिन विधानसभा में जाट समाज या एससी समाज का प्रभाव है उन विधानसभा में भाजपा की हार हुई है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती दोनों वर्गों को साधने की है।

3. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना : केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर लोगों में नाराजगी है। केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानून को लेकर लंबा आंदोलन हुआ था। इसमें हरियाणा के किसानों ने भूमिका निभाई। कई बार हरियाणा पुलिस और किसानों के बीच टकराव हुआ। इस कारण किसान हरियाणा सरकार से नाराज हो गए। वहीं केंद्र की अग्निवीर योजना से हरियाणा के युवा खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले युवक नाराज हैं। हरियाणा में बड़े स्तर पर युवा आर्मी भर्ती की तैयारी करते हैं।

अब पढ़िए लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन

11.06% वोट शेयर घटा
हरियाणा में इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को 46.06 प्रतिशत वोट मिले हैं। जबकि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 58 प्रतिशत था। 5 सालों में पार्टी का प्रदेश में 11.06 वोट प्रतिशत घटा है। वहीं, इस बार कांग्रेस का वोट शेयर 43.73 प्रतिशत रहा। 2019 में कांग्रेस को सिर्फ 28.42 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। 5 साल में कांग्रेस के वोट शेयर में 15.31 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।

इन मंत्रियों और विधायकों के गढ़ में पिछड़ी पार्टी
अंबाला शहर से असीम गोयल (परिवहन मंत्री), जगाधरी से कंवरपाल गुर्जर (कृषि मंत्री), पिहोवा से संदीप सिंह (पूर्व खेल मंत्री), कलायत से कमलेश ढांडा (पूर्व मंत्री), आदमपुर से भव्य बिश्नोई, नलवा से रणबीर सिंह गंगवा, बवानीखेड़ा से बिशंबर वाल्मीकि (राज्य मंत्री), फतेहाबाद से दुड़ाराम, रतिया से लक्ष्मण नापा, लोहारू से जेपी दलाल (कृषि मंत्री), कोसली से लक्ष्मण यादव, हथीन से प्रवीण डागर, होडल से जगदीश नागर के विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवार की हार हुई।

संगठन के बावजूद हरियाणा में BJP 49% बूथ हारी
हरियाणा में BJP का बूथ स्तर पर संगठन है, लेकिन लोकसभा चुनाव में 49% बूथों पर पार्टी हार गई। लोकसभा चुनाव में 19812 बूथ थे। इन बूथों में से BJP 9740 बूथ जीत पाई है। बाकी बचे 10,072 बूथ पर कांग्रेस सहित अन्य दल जीते, मगर भाजपा से अधिक बूथ बिना संगठन वाली कांग्रेस ने जीते।

वहीं भाजपा के लिए यह राहत है कि भाजपा ने 2019 के विधानसभा की तुलना में इस बार लोकसभा में ज्यादा बूथ जीते हैं। पिछली बार भाजपा ने 19481 बूथ में से 8528 बूथ जीते थे तो वहीं कांग्रेस 5934 बूथ ही जीत पाई थी। इस बार भाजपा ने 9740 बूथ जीते हैं।

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