कड़ी मेहनत करने पर भी विपरीत परिणाम मिलें, घर के सदस्यों के बीच अकारण ही मन-मुटाव और तनाव बढ़ने लगे, धन-दौलत और परिवार समृद्ध होने पर भी घर में शुभ और मांगलिक कार्य नहीं हो पा रहे हों, तो समझना चाहिए कि किसी कारणवश पितरों का आशीष परिजनों को नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में अगर पितृदोष का उपाय किया जाए तो अवश्य ही पितृपक्ष में पितरों की कृपा सरल एवं सहज रूप से प्राप्त होगी। ग्रहों के योग से बनने वाला पितृदोष व्यक्ति की सफलता एवं सुख-सुविधा में बाधक होता है। अगर किसी कारणवश व्यक्ति के पास जन्मपत्रिका का अभाव हो अथवा जन्म का सही समय, तारीख आदि का ज्ञान न हो, तो व्यावहारिक जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातों द्वारा स्पष्ट रूप से पितृदोष का संकेत प्राप्त होता है।
- *पितृदोष होने पर घर-परिवार में कोई भी काम पूरा होने वाला हो, तभी उसमें रूकावट आती हैं।
- *चिन्ता और रोग से लगातार धनहानि होने लगती है।
- *अच्छी कमाई और धन होने पर बचत नहीं हो पाती।
- *पुत्र या पुत्री, शिक्षित और आत्मनिर्भर होने पर भी, उनके विवाह में देरी या बाधाऐं आने लगती हैं।
- *मन में एक अन्जाना भय हमेशा बना होना पितृदोष की निशानी है।
- *जीवन में सब सुख-सुविधा होने के बावजूद भी किसी भी कार्य में मन नहीं लगता है।
- *डॉक्टरी जांच में सब कुछ नार्मल होने पर भी जब संतान न हो, घर में कलह-क्लेश का बोलबाला हो।
- *मुकदमे के कारण धन, समय एवं स्वास्थ्य की हानि हो रही हो, तो यह सब पितृश्राप के लक्षण बताए गए हैं।
पितृ प्रसन्न तो देवता प्रसन्न -धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य के सारे जप-तप, पूजा-पाठ, अनुष्ठान, मन्त्र साधना आदि तभी सफल होते हैं जब उसके पितृगण प्रसन्न होते हैं। पितरों के प्रसन्न होने पर ही सारे देवता प्रसन्न होते हैं, पितृगण के अतृप्त होने पर जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं आती हैं।
पितृपक्ष में यमराज करते हैं पितरों को मुक्त ताकि अपने वंशजों द्वारा तृप्त होने पर दे सकें आशीर्वाद - ब्रह्मपुराण के अनुसार यमराज पितृपक्ष में यमालय (यमपुरी) से पितरों को स्वतंत्र कर देते हैं जिससे पितृगण अपनी संतानों से पिण्ड दान लेने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। इस समय पितरों को यह आशा रहती है कि उन्हें पिण्डदान मिलेगा तथा पीने के लिए जल की प्राप्ति होगी लेकिन पिण्डदान आदि न प्राप्त होने पर पितरों की आशा, निराशा में बदल जाती है और वह दुःखी मन से श्राप देकर लौट जाते हैं। श्राद्ध से तर्पित हुए पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, पितरों की कृपा से सब प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध न करने पर पितृ देते हैं श्राप - श्राद्ध न करने पर पितरों को पितृलोक में अन्न-जल के अभाव की पीड़ा सहन करनी पड़ती है जिससे श्राद्ध न करने वाले वंशजों को भीषण समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों को अतृप्त भेजने वाले को वर्ष पर्यन्त अनेक कष्टों को भोगना पड़ता है। “पितृकोप” से अभिशप्त परिवार के सदस्यों का सौभाग्य, दुर्भाग्य में बदल जाता है और उन्हें अकारण ही रोग-शोक, दुःख-दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। अन्न-जल पाने के लिए पितृगण पितृपक्ष के दिनों में अपने पुत्र-पौत्रों के घर के दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। यदि पितृपक्ष की अमावस्या तक उन्हें तृप्त नहीं किया जाता है तो वह आशीर्वाद की जगह श्राप देते हैं जो व्यक्ति के दुर्भाग्य का कारण बनता है। ज्योतिष के ग्रन्थों में इसे ’पितृदोष‘ कहा गया है। पितृदोष के कारण व्यक्ति की प्रगति रुक जाती है और वह जीवन भर दुःखी एवं अभावग्रस्त रहता है।
पितृदोष शांति उपाय - पितृदोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है, इसलिए इसका निवारण बहुत जरूरी है। पितृगणों की स्मृति में प्याउ लगवाना चाहिए तथा भूखे गरीबों को भोजन की व्यवस्था पितृपक्ष में अवश्य करनी चाहिए। प्रत्येक अमावस्या को तर्पण एवं ब्राह्मणभोज करने से पितृदोष का निवारण होता है।
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