रेवाड़ी : कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार और जिला प्रशासन की ओर से बार-बार निर्देश जारी किए जा रहे हैं। गृहमंत्री
अनिल विज सख्ती अपनाने तक के आदेश दे चुके हैं लेकिन सरकारी विभाग ही इस कदर लापरवाही बरत रहे हैं कि कोरोना संक्रमण के फैलाव का रुकना संभव नजर नहीं आ रहा है। शहर के बाजारों में कोरोना खुलेआम बांटा जा रहा है। बाजारों में अतिक्रमण के कारण निकलने तक की जगह नहीं बची है, जिससे शारीरिक दूरी के नियम का कोई पालन नहीं हो पा रहा है। वहीं दूसरी ओर संडे बाजार की आड़ में दिल्ली व अन्य प्रदेशों से लोग आकर कपड़े व अन्य सामान बेच रहे हैं। इन लोगों की न तो कोई पहचान है और न ही कोई जांच होती है। दिल्ली से आने वाले इन लोगों के कारण संक्रमण किस तेजी से फैल सकता है, इसका अंदाजा हर किसी को है। कार्रवाई के नाम पर सरकारी दफ्तरों में सिर्फ सन्नाटा पसरा हुआ है। संडे बाजार के नाम पर खुला निमंत्रण अनलाक होने के बाद जिला प्रशासन की तरफ से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया, जिससे शहर में व्यवस्था बनी रहे। सबसे ज्यादा ढील बाजारों में दी गई और देखते ही देखते अतिक्रमणकारियों ने अपना पक्का कब्जा जमाना शुरू कर दिया। अनलाक के बाद से ही संडे बाजार भी लगना शुरू हो गया। संडे बाजार में दिल्ली व उत्तर प्रदेश से बड़ी तादाद में आकर दुकानदार फड़ लगाते हैं तथा कपड़े व अन्य सामान बेचते हैं। इन लोगों की कोई पहचान सुनिश्चित नहीं है और न ही कभी पुलिस ने इनकी पहचान जानने की कोशिश की। बाजार के दुकानदार अपनी दुकानों के सामने इन लोगों को जगह देते हैं और सरकारी सड़क का किराया खुद वसूलते हैं। दिल्ली में कोरोना चरम पर है, इसके बावजूद ये लोग आकर शहर के बाजारों में अतिक्रमण कर रहे हैं। बाजार की सड़कों पर प्रशासन की नाक के नीचे 20 से 30 फीट तक अवैध कब्जा किया जा रहा है और पैदल चलने तक के लिए जगह नहीं छोड़ी जा रही। बाजारों में इस कदर भीड़ हो रही है कि बस सिर ही सिर दिखाई पड़ रहे हैं। मास्क न लोग पहन रहे हैं और न ही दुकानदार। भीड़ में शारीरिक दूरी के पालन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। इन हालातों में आप कोरोना पर नियंत्रण किसी भी सूरत में नहीं पा सकते।
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ये है अतिक्रमणकारियों की छूट देने के बड़े कारण -शहर के बाजारों में दुकानदार अपनी दुकानों के सामने फड़ लगवाने के नाम पर मोटा किराया वसूल रहे हैं। सड़क सरकारी है लेकिन हर दिन का 500 से 1,000 रुपये तक किराया दुकानदार वसूल रहे हैं।
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