त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग जहां ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों हैं एक साथ, यहां कालसर्प दोष से मिलती है मुक्ति
श्रीत्र्यंबकेश्वर मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिन्हें भारत में सबसे अधिक पूजा जाता है। भगवान शिव का मंदिर नासिक जिले में स्थित है। मंदिर के पास ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से पुण्यसलिला गोदावरी नदी निकलती है। उत्तर भारत में पापनाशिनी गंगा का जो महत्व है, वही दक्षिण में गोदावरी का है। जिस तरह गंगा अवतरण का श्रेय महातपस्वी भागीरथ जी को है, वैसे ही गोदावरी का प्रवाह ऋषिश्रेष्ठ गौतम जी की महान तपस्या का फल है, जो उन्हें भगवान आशुतोष से प्राप्त हुआ था। शिवपुराण में वर्णन हैं कि गौतम ऋषि तथा गोदावरी और सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास करने निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव हैं यहां
इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है, जिसमें प्रवेश करने के पश्चात शिवलिंग आंख के समान दिखाई देता है, जिसमें जल भरा रहता हैं। यदि ध्यान से देखा जाए तो इसके भीतर एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन तीनो लिंगों को त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अवतार माना जाता है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है।
कालसर्प दोष की शांति
इस मंदिर में नागपंचमी या सावन में कालसर्प दोष की शांति वैदिक पंडितों के द्वारा करवाई जाती हैं। इस एकमात्र स्थान पर प्रतिवर्ष लाखों लोग कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां के शिवलिंग के दर्शन करने से ही कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। इस मंदिर में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है।
दर्शन से पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं
यह त्र्यंबक नामक ज्योतिर्लिंग सभी कामनाओं को पूर्ण करता है। यह महापातकों का नाशक और मुक्ति-प्रदायक है। जब सिंह राशि पर बृहस्पति आते हैं, तब इस गौतमी तट पर सकल तीर्थ, देवगण और नदियों में श्रेष्ठ गंगाजी पधारती हैं तथा महाकुंभ पर्व होता हैं।
पौराणिक कथा
शास्त्रों केअनुसार एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नियां किसी बात पर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं।इसके लिए उन्होंने गणेशजी की प्रार्थना की। तब गणेश जी ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर फसल खाने लगे। देववश गौतम वहां पहुंचे और तिनकों की मुठ्ठी से उसे हटाने लगे, तृणों के स्पर्श से गौ पृथ्वी पर गिर पड़ी और ऋषि के सामने ही मर गई। उस समय छिपे हुए सारे ब्राह्मण एकत्रित होकर गौ हत्यारे कह कर ऋषि गौतम का अपमान करने लगे। ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर गौतम ऋषि उन ब्राह्मणों से प्रायश्चित पूछा। ब्राह्मणों ने जो -जो उपाय बताए वे सब गौतम ऋषि ने किए। गौतम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वर मांगने को कहा। इस पर उन्होंने भगवान शिव से सदा वहीं पर निवास करने की प्रार्थना की। प्रार्थना करने पर भगवान भोलेनाथ वहीं गौतमी-तट पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
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